ओ एक ही कली की / अज्ञेय

ओ एक ही कली की
मेरे साथ प्रारब्ध-सी लिपटी हुई
दूसरी, चम्पई पंखुड़ी!
हमारे खिलते-न-खिलते सुगन्ध तो
हमारे बीच में से होती
उड़ जायेगी!

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.