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ओ डील / कन्हैया लाल सेठिया

ओ डील
अबै एक उजड़योड़ो गाँव,
अे नैण,
मन रै डूँढै रा साव सूना ठाँव है,
आँ में
जकी अचपळी जवानी बसती ही,
आप री
अणमोल मस्ती में गाती’र हंसती ही
बीं नै
आ इकल खोरड़ी कड़कस्या उमर
लड़’ झगड़’र काढ़ दीन्ही बारै,
ईं चामड़ी में पड़या सळ
बीं दुख्यारण रै पगाँ रां खोज है
जळा ही अब रया है लारै,
अै भी मिल जासी भुजण’र
रेत रै रेळै में
जद आसी मौत री
काळी पीळी आँधी सवारै !