ओ तुम सुन्दरम रूप!-
पर कैसे यह जाना जाय
कि रूप तुम्हारा है
और मेरा ही नहीं है?
ओ तुम मधुरतम भाव!
पर कैसे यह माना जाय
कि वह तुम्हारा है
कुछ मेरा ही नहीं है?
ओ तुम निविडतम मोह।
पर-
...मेरा ही तो मोह!
ओ तुम-पर मैं किसे पुकार रहा हूँ?
नयी दिल्ली, 7 अक्टूबर, 1968