Last modified on 27 फ़रवरी 2013, at 09:01

ओ नटवर / प्रतिभा सक्सेना

दुनिया के देव सब देवत हैं माँगन पे,
और तुम अनोखे, खुदै मँगिता बनि जात हो!
अपने सबै धरम-करम हमका समर्पि देओ,
गीता में गाय कहत, नेकु ना लजात हो!

वाह, वासुदेव, सब लै के जो भाजि गये,
कहाँ तुम्हे खोजि के वसूल करि पायेंगे!
एक तो उइसेई हमार नाहीं कुच्छौ बस,
तुम्हरी सुनै तो बिल्कुलै ही लुट जायेंगे!

अरे ओ नटवर, अब कितै रूप धारिहो तुम,
कैसी मति दीन्हीं महाभारत रचाय दियो!
जीवन और मिर्त्यु जइस धारा के किनारे खड़े,
आपु तो रहे थिर, सबै का बहाय दियो!

तुम्हरे ही प्रेरे, निरमाये तिहारे ही,
हम तो पकरि लीन्हों तुम छूटि कितै जाओगे!
लागत हो भोरे, तोरी माया को जवाब नहीं,
नेकु मुस्काय चुटकी में बेच खाओगे!

एक बेर हँसि के निहारो जो हमेऊ तनि,
हम तो बिन पूछे बिन मोल बिकि जायेंगे!
काहे से बात को घुमाय अरुझाय रहे,
तू जो पुकारे पाँ पयादे दौरि आयेंगे!