ओ सुहानी नदी,
ओ सयानी नदी,
दे हमें सिर्फ
दो घूँट पानी नदी!
तू पहाड़ी उतरकर
यहाँ आ गई,
अब यहीं पर ठहर
तू हमें भा गई।
दूर हमसे न जा
बाँसुरी सी बजा,
तू बनी जा रही क्यों
विरानी नदी!
प्यार करती हुई
धूप को छाँव को,
अब शहर को चली
छोड़कर गाँव को।
तू हमें साथ ले
थाम ये हाथ ले,
ले चलेंगे तुझे
राजधानी नदी!
यों ना जल्दी मचा
सब्र कर कुछ अभी,
हाँ, तुझे भी समंदर
मिलेगा कभी।
गाँव, जंगल, शहर
जाएँगे सब ठहर
खत्म हो जाएगी
सब कहानी नदी।