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ओ मोरे बासंती बालम! / कर्मानंद आर्य

कहाँ हो? तुम्हारी याद सता रही है, गंधमादन
निहार रही हूँ तुम्हारा पथ
सच कह रही हूँ पैसे की जरुरत नहीं है
अब सोना भी नहीं मांगती
आ जाओ! बेकार में क्यों परेशान होते हो

जानती हूँ जितना तुम कमाते हो
उतना सब कबीर की भेंट चढ़ जाता है. अब कबीर के नाम पर लड़ना नहीं
दूध और ट्यूशन का पैसा तो मैं ही पूरा करती हूँ
मैं और मेहनत करुँगी
ओ मोरे बासंती बालम!
तुम्हारे प्यार में मैं मजदूरिन सी कमसिन हो आयी
देखो न!

तुमने ही कमाने से रोक दिया था
जानती हूँ जरुरत में दो हाथ मिलें तो
तो ....क्या.....
घर बसता है बुद्धू!

मोरे बासंती पिहू!
हम लड़कियां कमजोर नहीं होती
न ही होती हैं लकड़ियाँ
बस हमें कह कहकर कमजोरी का काढ़ा पिला दिया जाता है
समय समय पर सर्दी की आग बना
ताप लिया जाता है
जियत मरत घूंट घूंट कर पीती हैं हम
काढ़ा और सर्दी

कहाँ हो! बासंती बालम
तुम्हारी याद सता रही है
अबकी बार वीकेण्ड पर भी मिलना नहीं हुआ