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ओ रे! बसंत / हरकीरत हीर

13
रंग -गुब्बारे
लगे बेरंग सारे
बिन तुम्हारे ।
14
भीगी अखियाँ
भीगा भीगा है मन
कैसा फागुन !!
15
सुन पवन
उड़ा ले जा रंग
देश-सजन ।
16
कैसा ये खेल
बिन रंग हो जैसे
जीवन जेल ।
17
ओ रे! बसंत
सुन ! यूँ न चहक
उठे कसक !
18
भेजे हैं रंग
हवा में सतरंग
घोल उमंग ।
19
हर दिल वो
रंग देना तुम,जो
हो गुमसुम।
20
ओढ़ चूनर
हँसे भू खिल- खिल
मीत आ मिल !
21
यादें सुहानी
रंग बारिश पानी
बनी कहानी।
22
न वो उमंग
न है अब तो कोई
रिश्तों में रंग ।
23
प्रीत के पत्ते
सूखे न प्रियतम
ज़रा हर्षा दे।
24
रंग दूँ रांझे
सुर्ख फूल मज़ार
खोल तू द्वार ।