Last modified on 23 अगस्त 2009, at 01:29

औरतें रोती हैं / सुदर्शन वशिष्ठ

बात-बात पर रोती हैं औरतें
बात-बात पर हँसती हैं
हालाँकि बहुत कठिन है
एक साथ हँसना
एक साथ रोना।

औरतें रोती हैं
बच्चे के होने पर
बच्चे के खोने पर
बिछुड़ने पर रोती हैं
तो मिलने पर भी

गाने की रस्म है इनके जिम्मे
तो रोने की भी
कोई भी जिए या मरे
ये ही गाएँगी
ये ही रोएँगी
औरतें रोती हैं

अपनों पर
सपनों पर
जिन से नहीं कोई नाता
ऐसे बेगानों पर

कभी अपने में ही
हँस देती हैं
अपने में ही रो देती हैं
बहुत कठिन है जानना
अब क्यों रोई
अब क्यों हँसी
अम्बर से गहरा है
ओरत का मन
बीज से बड़ा है
औरत सब के लिए ढाल है
अन्धेरे में मशाल है।