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औरत / अनुपमा तिवाड़ी

औरत, तुम्हें इंसान बनने में
लगेंगे अभी युग-युग
इसलिए अपने को जरा ढक कर रखो
सिर से तलवों तक
पता है न तुम्हें
कि लज्जा औरत का गहना है
दबी-ढकी तुम कितनी अच्छी लगती हो
अपने स्तनों की बनावट को छुपाती
शर्मीली सी
देखो, मैं औरत से पहले एक इंसान हूँ
ढको न
तुम भी अपना चेहरा
मुझे शर्म आती है
तुम्हारे दाढ़ी-मूँछ देखकर!