सोच के एक जरूरी मुकाम पर
अक्सर ये लगता है कि
क्यों न सोचा जाए
उन सभी संभावनाओं पर
जहाँ एक औरत और एक इंसान
बन जाएँ समानार्थी शब्द
एक औरत बने हुए ही
बहुत ही सहज, सुगम बल्कि है
एक इंसान बनना
बहुत से मूल अधिकार स्वतः ही
भर देते हैं व्यक्तित्व की झोली,
जबकि एक इंसान बने हुए ही
एक औरत बनने में
बहुत कुछ है जो पीछे छूट जाता है...