Last modified on 29 जून 2010, at 12:47

औरत की ज़िन्दगी / रेणु हुसैन

एक ही धरती पर
एक ही आसमान के नीचे
एक से दो घर
 
इन्हीं दो घरों में
एक औरत करती है सफ़र।
 
एक घर में खिलती है
फैल जाती है
दूसरे में कैद होकर सिमट जाती है

एक औरत की ज़िन्दगी
इन्हीं के दरमियां कट जाती है