और अब शुरू होता है
अनुपस्थिति का दुख ।
कामना की राह
अन्धेरी और लम्बी है ।
आकाश नीला और निर्दय
निहारता है बिना मदद किए ।
सितारे भटकते हैं
कामना की आकाशगंगाओं में
खोए हुए।
धरती चुपचाप विलाप करती है।
और अब शुरू होता है
अनुपस्थिति का दुख ।
कामना की राह
अन्धेरी और लम्बी है ।
आकाश नीला और निर्दय
निहारता है बिना मदद किए ।
सितारे भटकते हैं
कामना की आकाशगंगाओं में
खोए हुए।
धरती चुपचाप विलाप करती है।