वह सभी क्षण
जो मुझमें बसते थे
उड़कर आकाशगंगा
में बह गए।
और तब आदि ने
अनादि की गोद से उठकर
इन बहते पलों को
अपनी अंजली में भरकर
मेरी कोख में उतार दिया।
मैं एक छोर रहित गहरे कुएँ में
इन संवेदनाओं की गूँज सुनती रही।
एक बुझती हुई याद की
अंतहीन दौड़!
एक उम्मीद!
एक संपूर्ण स्पर्श!
और एक अंतिम रचना!