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और भी सुकुमार! / कविता भट्ट

जब वो हँसता है ना;
तो लगता है जैसे -
असंख्य गुलाबी फूल
भोर की लालिमा में
स्नान कर; हो गए हों-
और भी सुकुमार!
जैसे रजनीगंधा ने
बिखेरी हो सुगन्ध
आँचल की अपने!
जैसे मोती- भरे सीप
भर लाई षोडशी लहर
किनारे पर उड़ेल गई!
या प्रेयसी ने पसारी हों
अपनी प्रतीक्षारत बाहें!
चुप से रहने वाले उस
गम्भीर प्रेमी के लिए
जिसे मुक्त पवन भी
न कर सकी हो स्पर्श!