मेरा अंधेरा
खो गया था
उसकी आँखों में
और मैं भी-
चलते-चलते
उसके साथ
क्षितिज की सुनहरी पगडंडी पर ।
श्वेत दृष्टि
श्यामल हो उठी थी ।
मेरे
होने,
न होने को
वह विभक्त नहीं कर सका था
सूर्यास्त से
सूर्योदय के बीच ।
मेरा अंधेरा
खो गया था
उसकी आँखों में
और मैं भी-
चलते-चलते
उसके साथ
क्षितिज की सुनहरी पगडंडी पर ।
श्वेत दृष्टि
श्यामल हो उठी थी ।
मेरे
होने,
न होने को
वह विभक्त नहीं कर सका था
सूर्यास्त से
सूर्योदय के बीच ।