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और हम ? / पंकज त्रिवेदी

हमारे
अहसासों की धरती पर
पल रहे हैं कुछ खट्टे-मीठे
सपने

जो मुखौटे को चीरकर
दिल की तलहटी में फलते हैं
 
लोग तो पूजा करते हैं शिखर की
और हम...?

मूल गुजराती भाषा से अनुवाद : स्वयं कवि