कंचन मनि मरकत रस ओपी।
नन्द सुवन के संगम सुखकर अधिक विराजति गोपी।।
मनहुँ विधाता गिरिधर पिय हित सुरतधुजा सुख रोपी।
बदनकांति कै सुन री भामिनी! सघन चन्दश्री लोपी।।
प्राणनाथ के चित चोरन को भौंह भुजंगम कोपी।
कृष्णदास स्वामी बस कीन्हे,प्रेम पुंज को चोपी।।