Last modified on 30 अक्टूबर 2019, at 20:17

कंटकों की राह / प्रेमलता त्रिपाठी

कंटकों की राह फूलों में बदलना चाहिए।
हो उजाला सत्य का वह रवि निकलना चाहिए।

राह की बाधा मिटे जब भूल कोई हो नहीं,
मीत भावों का हृदय में दीप जलना चाहिए।

शूल में भी फूल खिलते है विकल मन क्यों भला,
मर्म छूते भाव अपने फिर सँभलना चाहिए।

हो सुखों की चाह यदि मनको जगाना है हमें,
धुंध नयनों से हटा रिश्ते सुलझना चाहिए।

आपसी कटुता मिटेगी हो उदित जन भावना
हार मन की जीत बनती उर पिघलना चाहिए।

प्रीत पावन दे गए नीरज सदी की साधना,
गीत अधरों को मिला है मीत मिलना चाहिए।