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कई प्रेमिकाएं हैं मेरे जीवन में / सर्वेश अस्थाना

कई प्रेमिकाएं हैं मेरे जीवन में
महक बिखेरा करतीं हैं मन उपवन में।
अभिलाषा है प्रथम प्रेमिका दिल में रहती
आकांक्षा तो नही उपेक्षा है सह सकती।
इन दोनों सुंदरियों ने वश में कर रक्खा
और तीसरी इच्छा मुझ बिन क्या रह सकती।।
इनकी खातिर ही साँसे हैं मेरे तन में

महक बिखेरा करती हैं मन उपवन में।
दिन चढ़ता तो इठलाती सी आये कामना,
दुनिया से मिलवाए छिपाये चपल भावना।
इन दोनों ने धड़कन पर काबू कर रक्खा,
मैं पागल प्रेमी, मुझको तड़पाये याचना।
इनकी खातिर सांस चल रही है तन में,
महक बिखेरा करती है मन उपवन में।।

चढ़े दोपहर हिम्मत पास बुलाती है,
ताक़त मुझपर अपनी जान लुटाती है।
सबकुछ कर डालूँ इन प्रेयसि की खातिर
दृढ़ता मुझको छूकर भाव जगाती है।
शक्ति बुला लेती मुझको आलिंगन में,
महक बिखेरा करती है मन उपवन में।

शाम सुहानी ले आती है निशा निमंत्रण,
और नींद की प्रबल तरंगों का आमंत्रण।
सभी प्रेमिकाएं आ जातीं बिस्तर पर,
पाकर साथ पुलक उठता है तन का त्रण।
और कल्पना बलखाती हर आँगन में,
महक बिखेरा करती है मन उपवन में।।