Last modified on 1 जनवरी 2009, at 18:07

कई बरस पहले / प्रयाग शुक्ल

एक बहुत पुराने काले
संदूक पर
बैठी हुई स्त्री वह--
माँ थी मेरी ।

एक लड़के के घर से
दूसरे लड़के के घर जाती हुई ।

दूर से देखता था मैं
संदूक को
रहते होंगे
कभी मेरे भी कपड़े
इसमें, बचपन के ।