एक बहुत पुराने काले
संदूक पर
बैठी हुई स्त्री वह--
माँ थी मेरी ।
एक लड़के के घर से
दूसरे लड़के के घर जाती हुई ।
दूर से देखता था मैं
संदूक को
रहते होंगे
कभी मेरे भी कपड़े
इसमें, बचपन के ।
एक बहुत पुराने काले
संदूक पर
बैठी हुई स्त्री वह--
माँ थी मेरी ।
एक लड़के के घर से
दूसरे लड़के के घर जाती हुई ।
दूर से देखता था मैं
संदूक को
रहते होंगे
कभी मेरे भी कपड़े
इसमें, बचपन के ।