- कचरा बीनने वाली लड़कियाँ / भगवत रावत
आपने अपने शहर में भी
ज़रूर देखी होंगी
कचरा बीनने वाली लड़कियाँ
मोहल्ले भर के कूड़े के ढेर पर
चौपायों सी चलती-फिरती
कचरे में अपने आप पैदा हो गई
नहीं लगतीं
ये कचरा बीनने वाली लड़कियाँ ?
जगह-जगह फटे
अपने कपड़ों जैसे टाट के बोरे में
भरती हैं वे बीन-बीन कर
हमारे आपके रद्द किये कागज़ के टुकड़े
टूटे-फूटे टीन और प्लास्टिक के डिब्बे
जब कोई छपा हुआ फोटू
या साबुत डिब्बा मिल जाता है उन्हें
तो वे रख देती हैं अलग सँभालकर
और उस समय तो आप
उन्हें देख नहीं सकते जब वे
कचरे में से जाने क्या उठाकर
चुपचाप मुँह में रख लेती हैं
अपने आस पास
घूमते सुअरों के बीच कैसी लगती हैं
ये कचरा बीनने वाली लड़कियाँ ?
यह सवाल
समाज शास्र् के कोर्स के बाहर का है
और सौन्दर्यशास्र् उनके लिए
अभी बना नहीं
हाँ, आजकल कलात्मक फोटोग्राफी के लिए
मसाला जरूर हो जाती हैं
ये कचरा बीनने वाली लड़कियाँ
अपनी त्वचा पर
कालिख की परतों पर परतें चढ़ाती
बालों को जट-जूटों की तरह
फैलाती-बढ़ाती
बिना शरम-लिहाज़
शरीर को चाहे जहाँ खुजलाती
पसीने और पानी के छीटों से बनी
मैल की लकीरों वाले चेहरे पर
पीले दाँतों से
न जाने किसको मुँह चिढ़ाती
आठ-नौ बरस से
बीस-पच्चीस तक की उमर की
पता नहीं कब कैसे
किस कूड़े घर से
अपने पेट में
बच्चे तक उठा ले आती हैं
ये कचरा बीनने वाली लड़कियाँ
मर तो चुकी थीं सारी की सारी
चौरासी की गैस में
अब किससे पूछें
फिर कहाँ से उग आई हैं
ये कचरा बीनने वाली लड़कियाँ ?
किसी रजिस्टर में इनका नाम नहीं लिखा
ढूँढने पर भी इनके बाप का पता नहीं मिलता
इनका कहीं कोई भाई नहीं दिखता
यहाँ तक कि ख़ुद ही
अपनी माँ होती हैं
ये कचरा बीनने वाली लड़कियाँ।