उस के लिए मैं
रात के मट-मेले अँधेरे की
कची नींद में उग आया
एक अध् पक्का सपना हूँ
जो रात के पिछले पहर ही
नींद की कमज़ोर टहनी से
गिर कर
यादों की टोकरी से
फिसल जाता है
और सवेरा होने पर
कभी याद नही आता.
उस के लिए मैं
रात के मट-मेले अँधेरे की
कची नींद में उग आया
एक अध् पक्का सपना हूँ
जो रात के पिछले पहर ही
नींद की कमज़ोर टहनी से
गिर कर
यादों की टोकरी से
फिसल जाता है
और सवेरा होने पर
कभी याद नही आता.