हम बच्चे डरते कछुए से, 
पर हम से डरता कछुआ। 
छूए अगर कोई तो झटपट 
मुंह अंदर करता कछुआ। 
ढीलमढील अंग हैं सारे, 
पत्थर-सी हैं पीठ मगर!
इतना सुस्त, चले दो मोटर 
दिन-भर चलता रहे अगर!
हम बच्चे डरते कछुए से, 
पर हम से डरता कछुआ। 
छूए अगर कोई तो झटपट 
मुंह अंदर करता कछुआ। 
ढीलमढील अंग हैं सारे, 
पत्थर-सी हैं पीठ मगर!
इतना सुस्त, चले दो मोटर 
दिन-भर चलता रहे अगर!