कटा हुआ खेत कभी-कभी
कर जाता है
मन को रेत कभी-कभी
धान छोड़कर गया
हवाओं में सोच कुछ
डंठल
सूखे पुआल
पंखध्वनि
झरे हुए दानों पर चोंच कुछ
गिद्धों का हमला
समवेत कभी-कभी
कर जाता है
मन को रेत कभी-कभी
कटी खूँटियों के घावों में
गंधों का
आख़िरी प्रणाम है
खेतों की गहराती
सूखती बिवाइयाँ
उस बूढ़े कमिए
की एड़ी के नाम है
बच्ची बनिहारिन का
पेट कभी-कभी
कर जाता है
मन को रेत कभी-कभी
हम भी तो थे
ख़ुशबूदार कुल प्रजाति के
लेकिन संदर्भों से कट गए
छठे में चुकौती में
हंडी में भीख में
अक्षत उत्कोचों में बँट गए
ख़ुद को पैरोट लगे
प्रेत कभी-कभी
कर जाता है
मन को रेत कभी-कभी ।