घर में नहीं है अब वह काठ की कठौत
आजी-नानी जिसमें दही जमाती थीं ,
किसी भी घर से माँगा जा सकता था
चम्मच-भर जामन
और घर की अतिरिक्त खटास सोख लेती थी
कठौत।
उसमें कोई-कैसे भी पेंच नहीं थे
सीधी-सरल बनक
सीधा-सरल घर-आँगन ,
और चुपके से गंगा का
आ समाना कठौत में।
जंगल-दरख्त से टूट
रसोई का हिस्सा बनते
कभी नहीं सोचा था कठौत ने
कि घर-रसोईं से बेदखल होकर
एक दिन वह
पुरा प्रदर्शनियों में पहुँच जाएगी।