बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
कड़तन लागौ मूड़ दिरौंदा,
कड़ीं न सिर खों ओंदा।
कारीगर ने बुरऔ बनाऔं।
धरौ न ऊँचों गोंदा।
लच गई, लफ गई, दूनर हो गई,
नेंनूँ कैंसो लोंदा
ईसुर उनें उठा नई पाए,
हतो उतै सकरोंदा।
कड़तन लागौ मूड़ दिरौंदा,
कड़ीं न सिर खों ओंदा।
कारीगर ने बुरऔ बनाऔं।
धरौ न ऊँचों गोंदा।
लच गई, लफ गई, दूनर हो गई,
नेंनूँ कैंसो लोंदा
ईसुर उनें उठा नई पाए,
हतो उतै सकरोंदा।