Last modified on 8 फ़रवरी 2016, at 12:03

कड़वी सच्चाई / पल्लवी मिश्रा

कुछ सच्चाई अक्सर
इतनी कड़वी और दुखद होती है
कि उनको सच न मानना ही बेहतर;
यदि ये सच उजागर हो जाएँ
तो कितने ही
रेत की दीवारों से सम्बन्ध
ढह जाएँ
कितने ही चेहरों से
शराफत के नकाब हट जाएँ
और वे पत्थर
जिन्हें हम ईश्वर समझ पूजते रहे
एक मामूली शिलाखण्ड रह जाएँ
कुछ सच्चाइयों का
अपने हाथों से घोंट कर गला
उनके शव को
हृदय के किसी कोने में
दफन करना पड़ता है,
कभी अपनी,
कभी अपनों की,
इज्जत बेआबरू होने से
बचाने के लिए
कभी अपना,
कभी अपनों का,
घर सजाने के लिए।
मैंने भी
ऐसे कुछ सच के
टुकड़ों की चुभन को
हृदय में
महसूस करते हुए
जीना सीख लिया है,
हृदय में घुटन की गर्मी से
पिघले संवेदना के आँसुओं को
मुस्कान ओढ़कर
पीना सीख लिया है।