कथा आरम्भ / प्रेम प्रगास / धरनीदास

चौपाई:-

पच्छिम कासमीर अस्थाना। पंचवटी एक नगर बखाना।।
देवनारायण भूपति ताही। सात द्वीप नव खंड सराही।।
उग्रतेज तप तवे नियारा। अतिवलिवंड न काहु जोहारा।।
गढ पर्वत चहुंओर सोंहाहीं। चारो वरन छतीसो वाहीं।।
सुन्दर लोग सुंदर सुरज्ञानी। सबके चित वस धर्म-कहानी।।

विश्राम:-

सकल वस्तु तहं पूरन, एक न खंडित दीस।
चिर जीवहु अस राजहिं, मुनिवर करहिं असीस।।8।।

चौपाई:-

तेहि कुल कुंअर एक मनियारा। वत्तिस लक्षण तेहि उजियारा।।
अति सुन्दर उपमा केहि लाओं। मन-मोहन तेहि नाम सुनाओं।।
अति पंडित सुन्दर सुर ज्ञानी। बोल वचन हित अमृत वानी।।
राग रंग कौतुक प्रिय लागै। त्यागि पांव ताके दुख भागे।।
भोग, विलास, भक्ति मन भावै। सुख के भवनहिं दिवस गंवावै।।

विश्राम:-

बहुत कुंअर संग सेवहिं, करहिं विनोद अनंद।
सकल लोग तेहि मांह अस, जस दुतिया को चंद।।9।।

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