तानाशाह
किसी कुशल कथाकार की तरह
गढ़ रहा है अपने पात्रों को
और अंजाम दे रहा है दुर्घटनाओं को
तानाशाह की उंगलियों में है
सभी पात्रों की डोर
चह जिसे जैसा चाहता है नचाता है
ऊँचा-नीचा दिखाता है
और धराशाही कर देता है
एक को दूसरे से पिटवाकर ......
तानाशाह
एक कथा रचता है
जिसमें भरे होते हैं
बड़े-बड़े चमत्कार, बड़े-बड़े रोमांच
वह जोड़ता रहता है उपकथाएं
बनाता रहता है मनचाही स्थितियां
तानाशाह जब चाहता है कहानी का अंत
कर देता है
जब चाहता है चुपचाप खुद को निकाल
लेता है कथा से बाहर
और बचा रहता है हमेंशा
किसी कथाकार की तरह
कथा के अंत में .....।