अडिग रही आपन आस्था आत्मदान में
मन मंदिर के घंटियन में गूंजी हमनी के प्रेम
दखनइया मलयानिल हिलोर लेई हमनी के प्रेम के स्वागत में
खुल जाई हृदय के पृष्ठ
आ कविगन हरियर कचनार धरती के बोलइहें
हमनी के राग भाव में।
सारंगा सदाबृज के कथा
झरी गेना के फूल से
झूम उठी सगरो पिरिथिमी
देरेदा* कs दर्शन आ
उत्तर आधुनिकता
हम दुनहुँन के निहरिहें टुकुर-टुकुर अलसाइल।
हमनी के प्रेम कुमार गंधर्व के स्वर लहरी बन जाई
चंडीदास आ आज के कविता के लय के मध्य
हम दूनों विचरन कइल जाई
हम दूनों प्रीति करत रहल जाई
हम दूनों प्रेमवे जीयत रहल जाई।