चौपाई:-
जो जन कथा पढै मन लाई। सुमति वढे दुर्मति वहि जाई॥
जो जन सुनै श्रवण चित लाई। ताको कर्त्ताराम सहाई॥
जो पढ़ि आनहिं कथा सुनावे। ताकी मनसा देव पुजावै॥
लिखि लिखाय जोआनहि देई। तीर्थ विरत फल वैठे लेई॥
अपने हाथ जे कथा उतारे। ताको वाढे ज्ञान आपारे॥
विश्राम:-
रसिक पढे रस ऊपजे, मूरख उपजे ज्ञान।
कादर नर हो सूरमाउ, योगी पद निर्वान॥249॥