कहै छऽ की आरो करै छऽकी बूझै मनेमऽन सभ्भेॅ छी,
कथिलेॅ बोलबऽ चुप्पेॅ छी।
कैल्हेॅ कि बनभौं जों मालिक हम्में।
गाँव के सुधारभौं एक दम्में॥
दर्शन तेॅ होयछेॅ तोर्हा से हरदम।
पूजा-परसादी नै छूछेॅ बम-बम॥
कहै छऽ की आरो करै छऽकी बूझै मनेमऽन सभ्भेॅ छी,
कथिलेॅ बोलबऽ चुप्पेॅ छी।
होलऽ नेमान घऽर सभ्भै रऽ भरलऽ।
तोर्हऽ चिराग, तेल हमरे जरलऽ॥
कानै छी देॅकेॅ, खाली छेॅ पेट।
कारऽ पेॅ तोहें हम्में हेठे-हेठ॥
कहै छऽ की आरो करै छऽकी बूझै मनेमऽन सभ्भेॅ छीेॅ
कथिलेॅ बोलबऽ चुप्पेॅ छी।
जन्नेॅ देखऽ हुन्हैं गटकनाथ।
टट्टी के आढ़ऽ में चलै छै मांस-भात॥
आभियऽ तेॅ चेतऽ दम जरा मारऽ।
ऐथैं गामऽ में होभेॅ उधारऽ॥
कहै छऽ की आरो करै छऽकी बूझै मनेमऽन सभ्भेॅ छीेॅ
कथिलेॅ बोलबऽ चुप्पेॅ छी।