देखी केॅ हमरा अकेलोॅ ,
तोंय कहोॅ कथी लेॅ एैल्हेॅ ।
भलेॅ ही तेॅ अन्हार छेलै
दुखोॅ के बसबार छेलै
नयन लोर के धार छेलै
काल केरोॅ मार छेलै
आवी गेल्होॅ फेरू केनां
आग बंशी के बजैलेॅ ।
साँवरी साँझ रोॅ प्रीतम
जावेॅ लागलोॅ छै आबेॅ
ताल-ताल में खिललोॅ कमल
मुरझावेॅ लागलोॅ छै आवेॅ
संझवाती के लौ में बोलोॅ
पीड़ा बनी तोंय कैन्हें एैल्हेॅ ।
आबेॅ तेॅ सांझ-सबेरे आवै छोॅ
आशा रोॅ दीप जलावै छोॅ
विमल मीत के विमल प्रेम रोॅ
फेरु-फेरु आस जगावै छोॅ
दुख छै तेॅ बस अतन्है टा
तोंय छहाछत कैन्हेॅ न एैल्हेॅ ।