टेर वंशी की
यमुना के पार
अपने-आप झुक आयी
कदम की डार।
द्वार पर भर, गहर,
ठिठकी राधिका के नैन
झरे कँप कर
दो चमकते फूल।
फिर-वही सूना अँधेरा
कदम सहमा
घुप कालिन्दी कूल!
टेर वंशी की
यमुना के पार
अपने-आप झुक आयी
कदम की डार।
द्वार पर भर, गहर,
ठिठकी राधिका के नैन
झरे कँप कर
दो चमकते फूल।
फिर-वही सूना अँधेरा
कदम सहमा
घुप कालिन्दी कूल!