हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
कदिया ना गये राजा नौकरी कदिया ना कटाया अपना नाम
रसीले बन में एकले।
कदिया ना भेजी राजा बाप के कदिया ना आये तांगा जोर
रसीले बन में एकले।
कदिया ना बैठे राजा चौंतरे कदिया न परखी मेरी चाल
रसीले बन में एकले।
कदिया न बुनी राजा जेवड़ी कदिया ना बुरी मेरी खाट
रसीले बन में एकले।
अब के तो जाऊं गोरी नौकरी अब के तो कटाऊं अपना नाम
रसीले बन में एकले।
अब के तो भेजूं गोरी बाप के अब के तो ल्याऊं तांगा जोर
रसीले बन में एकले।
अब के तो बैठून गोरी चौंतरे अब के तो परखूं तेरी चाल
रसीले बन में एकले।
अब के बाटूं गोरी जेवड़ी अब के तो बुनूं तेरी खाट
रसीले बन में एकले।