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कपट-कथा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


बरसों से अपनापन ओढ़े
वे सब तो बेगाने निकले।

जिनके मन में दग़ा भरी थी
हमें वफ़ा समझाने निकले।

अधरों से मधु झरा आज तक
हमको ज़हर पिलाने निकले।

कपट-कथा जो रहे बाँचते
वही हमें भरमाने निकले ।


धूल नहीं थे जो इस पथ की
पर्वत से टकराने निकले।

आस्तीन में रहे जो छुपकर
हमको सबक सिखाने निकले।

आग लगाकर मेरे घर में
अपना फ़र्ज़ निभाने निकले।