Last modified on 21 मई 2014, at 22:45

कबहूँ ऐसा बिरह उपावै रे / दादू दयाल

कबहूँ ऐसा बिरह उपावै रे।
पिव बिन देऐं जीव जावै रे॥टेक॥

बिपत हमारी सुनौ सहेली।
पिव बिन चैन न आवै रे॥
ज्यों जल मीन भीन तन तलफै।
पिव बिन बज्र बिहावै रे॥१॥

ऐसी प्रीति प्रेमको लागै।
ज्यों पंखी पीव सुनावै रे॥
त्यों मन मेरा रहै निसबासुर।
कोइ पीवकूँ आणि मिलावै रे॥२॥

तौ मन मेरा धीरज धरई।
कोइ आगम आणि जणावै रे॥
तौ सुख जीव दादूका पावै।
पल पिवजी आप दिखावै रे॥३॥