तुम गर्व कर लो कबीर
अपनी उजली चादर का
पुरुष थे न!
जिम्मेदार अपने
और अपनी चादर की स्वच्छता के।
पर नारी होते तो समझते
कि कैसे ज़बरन पोंछ दिए जाते हैं
मैले, गन्दे हाथ,
साफ़ उजली छुपाकर रखी चादर में,
इतने पर भी संतोष न हो तो
नुकीले वे हाथ नोंच डालते हैं आत्मा तक।
लहूलुहान आत्मा और मैली चादर ले
कैसे गर्व करे बेचारी लोई!
इसीलिए मौन बनी रही।