जलावतनी में
एक स्वप्न देखा मैंने
मेरे छूटे हुए घर के आँगन में
फिर से हरा हो गया है चिनार
और उसकी एक डाल पर
आ बैठी है
झक सफ़ेद कबूतरों की एक जोड़ी
मुझे देखती अनझिप
ये कबूतर
उतरना चाह रहे हैं मेरे कंधो पर
लगा मुझे ये आए हैं
स्वामी अमरनाथ की गुफा से उड़कर
मेरे उजड़े आँगन में
कि आज चिनार के नीचे
नए सिरे से घटित होती है
अमरकथा