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कब से तेरा पथ जोह रही हूँ सजल बिछा पलकें प्रियतम / प्रेम नारायण 'पंकिल'


कब से तेरा पथ जोह रही हूँ सजल बिछा पलकें प्रियतम!
तुम जैसे छोड़ गये वैसी ही सूनी सेज पड़ी अनुपम।
हैं अस्त-व्यस्त सिलवटें न सम करती उनको कर फैलाये।
तेरे आने तक प्राण प्रेम के रेखाचित्र न मिट जायें।
निशिदिन कदम्ब के तले न जाने कितने करूण गीत गाये।
आये न हाय प्राणेश सखी री! प्रियतम नहीं-नहीं आये।
उर-मथनी पीर कहाँ पाये, बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥140॥