अश्रुसिक्त रज से किसने
निर्म्मित कर मोती सी प्याली;
इन्द्रधनुष के रंगों से
चित्रित कर मुझको दे डाली?
मैने मधुर वेदनाओं की
उसमें जो मदिरा ड़ाली;
फूटी सी पड़ती है उसकी
फेनिल, विद्रुम सी लाली।
सुख दुख की बुदबुद सी लड़ियां
बन बन उसमें मिट जातीं,
बूँद बूँद होकर भरती वह
भर कर छलक छलक जाती।
इस आशा से मैं उस में
बैठी हूँ निष्फल सपने घोल,
कभी तुम्हारे सस्मित अधरों—
को छू वे होगे अनमोल!