Last modified on 4 नवम्बर 2009, at 15:49

कभी पाना मुझे / कुंवर नारायण

तुम अभी आग ही आग
मैं बुझता चिराग
 
हवा से भी अधिक अस्थिर हाथों से
पकड़ता एक किरण का स्पन्द
पानी पर लिखता एक छंद
बनाता एक आभा-चित्र

और डूब जाता अतल में
एक सीपी में बंद

कभी पाना मुझे
सदियों बाद

दो गोलाद्धों के बीच
झूमते एक मोती में ।