रेशमी है हर सुबह की किरण-अंगुलियाँ
हर संध्या के गाल लाज से लाल हुआ करते हैं
हर निर्झर के केश हवा की साँसों से
संज्ञा के आसमान में लहरा जाते
हर नदिया के तीर फैल बेहाल हुआ करते हैं
हर गुलाब की देह खींचती है आँखें
हर नर्गिस की बाँह बुलाती है हिल हिल
पर इस तरह यदि हर जगह पिघला करेगा
तो चलेगा काम कैसे रे मेरे दिल!
तू बड़ा कमज़ोर निकला रे मेरे दिल!
बहुत सारे चुंबनों पर चाँद मुस्कुराता है
और बिजली दौड़ती है बहुत से आलिंगनों में
बहुत से आह्वान जिनको अनसुना सकता नहीं तू
बहुत मजबूरी भरी है बहुत सारे बंधनों में
बहुत से हैं वक्ष जिन पर मक्खनी मासूमियत छाई हुई है
बहुत सारे नयन-फूलों से छलकती है नशीली भोर झिलमिल
पर इस तरह यदि हर जगह पिघला करेगा
तो चलेगा काम कैसे रे मेरे दिल!