कमल कोक श्रीफल मँजीर कलधोत कलश हर।
उच्च मिलन अति कठिन दमक-बहु स्वल्प नीलधर॥
सरवन शरवन हेय मेरु कैलाश प्रकाशन।
निशि बासर तरुवरहिं कांस कुन्दन दृढ़ आसन॥
इमि कहि 'प्रवीन' जल थल अपक अविध भजित तिय गौरि संग।
कलि खलित उरज उलटे सलिल इंदु शीश इमि उरज ढंग॥