नीले नभमंडल में
तिरते हुए बादल
गिनती में सिर्फ़ चार
कैसे कहूँ दल-बादल !
उनमें से प्रथम तीन
मानव-आकृतियों-से
चौथा था — बालू पर
ऊँट भरे डग जैसे ।
उनका सैलानी मन
जब उरूज़ पर आया
पाँचवा बादल भी
उनसे आ टकराया ।
लेकिन वह पाँचवाँ था
ख़ासा ख़ुराफ़ाती—
अपने डीलडौल में
छिपाए था कई हाथी ।
जो कि निकल-निकल
यहाँ-वहाँ लगे भागने
उनसे आसमान भी
पनाह लगा माँगने ।
तभी, शायद छठा, आया,
क्या तो कमाल की
दी उसने घुड़की;
हवा हुए पल-भर में
सब-के-सब
ऐसी ज़ोरदार रही
छठे बादल की झिड़की !
उसके बाद बादलों को
हरे चारे-सा चबाता हुआ
पीले रंग के किसी जिराफ़-सा
दीख पड़ा सूरज
चौकड़ी भरता आता हुआ !
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल