करनी है नीलाम ज़िन्दगी लुटे हुए अरमानों की
बोली कौन लगायेगा पर उजड़े हुए मकानों की॥
सदियों से नारी भरमाई जाती है पूज्या कह कर
पीड़ा कौन समझ पाता है लुटते हुए ठिकानों की॥
नित नव की उमंग में डूबे इस अग जग का क्या कहना
भला रह गई पूछ कहाँ अब बूढ़ों और पुरानों की॥
है महत्त्व मंजिल का केवल कौन याद रख पाता है
जहाँ पाँव रख कर आये उन ठुकराये सोपानों की॥
विजय मिली यदि तो राहों की हर ठोकर विपदा भूली
कीमत क्या रह जाती है अपनाये हुए बहानों की॥