मुझको ही मार गया
मेरा करमदंड
और मैं
कराहता हूँ
अतीत से जुड़े वर्तमान में
भविष्य का कंधा
पकड़कर
जीने के लिए
भविष्य नहीं दिखता मुझे
कि छुऊँ
और जिंदगी में जिऊँ
जैसी नहीं जी मैंने
अब तक
एक भी क्षण
रचनाकाल: १०-११-१९७०, रात
मुझको ही मार गया
मेरा करमदंड
और मैं
कराहता हूँ
अतीत से जुड़े वर्तमान में
भविष्य का कंधा
पकड़कर
जीने के लिए
भविष्य नहीं दिखता मुझे
कि छुऊँ
और जिंदगी में जिऊँ
जैसी नहीं जी मैंने
अब तक
एक भी क्षण
रचनाकाल: १०-११-१९७०, रात