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करुणा / सारिका उबाले / सुनीता डागा

मैं
आदम और हव्वा के
अनुभव के पश्चात की
पाँचवी अनुभूति
करुणा ।

मैं
एक भी ऋतुस्राव को
व्यर्थ न गँवाकर
निरन्तर फलने वाली
कोख ।

मै
पाँच-पाँच पतियों को
सिर्फ़ पुत्र ही
प्रदान करती हुई
एक-वचना मैं ।

मैं
नियोग के लिए
आतुर
नपुंसक पति की
एकनिष्ठ पत्नी ।

मैं
हर दिन एक ही एक खेल
बिना थके खेलती
बनती हूँ अभिसारिका
पेट की ख़ातिर ।

मैं
सोलह सावन का पुण्य
बटोरकर
जलती हुई सती
मैं ।

मैं
रौंदती हर छह माह में
अपनी ही कोख का अंश
इसलिए कि
नहीं है पुरुष वह।

मूल मराठी से अनुवाद : सुनीता डागा