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करुणा की वाणी / जनार्दन राय

करुणा की वाणी का गीत लिख रहा,
टूटे हृदय का संगीत गा रहा।
न सोचा जो था स्वप्न में भी कभी,
आँखों के सम्मुख है आया अभी।
है इन्सान कितना बदलता रहा,
टूटे हृदय का संगीत गा रहा।
करुणा की वाणी का गीत लिख रहा,
टूटे हृदय का संगीत गा रहा।

आँखों की सुचिता लुभाती रही,
वाणी की मृदुता बुलाती रही।
हैं आँखें वही पर न पानी रहा,
टूटे हृदय का संगीत गा रहा।
करुणा की वाणी का गीत लिख रहा,
टूटे हृदय का संगीत गा रहा।

ममता की धारा थी बहती जहाँ,
करुणा की लहरें थी उमड़ी वहाँ।
अब तो सहानुभूति श्रोत सुख रहा,
टूटे हृदय का संगीत गा रहा।
करुणा की वाणी का गीत लिख रहा,
टूटे हृदय का संगीत गा रहा।

सुनते संगीत जो वे प्रश्न कर रहे,
बुढ़ापा में ऐसा क्यों गीत लिख रहे?
दूँ क्या जवाब यही सोचता रहा,
टूटे हृदय का संगीत गा रहा।
करुणा की वाणी का गीत लिख रहा,
टूटे हृदय का संगीत गा रहा।

चेतना जगी अनेक चेत न रहा,
भाव के प्रवाह में न होश कुछ रहा।
पाने के पल पा भी खोता रहा,
टूटे हृदय का संगीत गा रहा।
करुणा की वाणी का गीत लिख रहा,
टूटे हृदय का संगीत गा रहा।

योजना बनी मन का जोश बढ़ गया,
आशा-आकांक्षा अस्वार लग गया।
पग तो बढ़े लक्ष्य भागता रहा,
टूटे हृदय का संगीत गा रहा।
करुणा की वाणी का गीत लिख रहा,
टूटे हृदय का संगीत गा रहा।

वेदना दी जग ने आभार मानता,
भावना जगी सुख का सार जानता।
गीतों के छन्द का सृजन चल रहा,
टूटे हृदय का संगीत गा रहा।
करुणा की वाणी का गीत लिख रहा,
टूटे हृदय का संगीत गा रहा।

मानव बन मानव को प्यार जो दिया,
लगता अक्षम्य यह गुनाह बन गया।
जो भी हो दिल का है तार बज रहा,
टूटे हृदय का संगीत गा रहा।
करुणा की वाणी का गीत लिख रहा,
टूटे हृदय का संगीत गा रहा।

-समर्था,
25.11.1985 ई.