माँ मुझे करूणा का अर्थ नहीं आता
बार-बार पूछता हूँ टीचर सर से
वे झुँझलाकर बताते हैं बहुत से अर्थ
उलझे-उलझे
मैं उनका मुँह देखता हूँ
मैं कहता हूँ रहने दे ‘सर’
माँ से पूछ लूँगा
वे हँसते हैं
जब अँधेरा टूटने को होता है
किसी धुँधलके में मैं तुम्हारा प्रसन्न मुख देखता हूँ
या जब परीक्षा के दिन होते हैं
तभी करूणा के सारे अर्थ मेरी समझ में आ जाते हैं
सीधे सरल अर्थ
आशा रहित दिनों में
तुम कठिन शब्दों का अर्थ समझाती हो
पता नहीं, माँ, तुम किस स्कूल में पढ़ी हो
कितनी कक्षा तक।